हमारी आखिरी उम्मीद हम खुद है और जब तक हम है उम्मीद कायम है

7 Min Read
Motivational Story

अकेले रहने का मजा ही अलग हैं, ना किसी की जरूरत ना किसी से उम्मीद

अकेले रहने का मजा ही अलग हैं, ना किसी की जरूरत ना किसी से उम्मीद, जहाँ हम साझा करेंगे अपनी खुद से उम्मीदें और सपने। यहाँ पर हम व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन के बारे में बातचीत करेंगे, और खुद को खोजेंगे उस अनोखी खुशियों, साथ और जीवन की हर समस्या को एक नई राह दें। हमारी आखिरी उम्मीद हम खुद है, और यहाँ तक की जब तक हम हैं, उम्मीद कायम है।

हमारी आखिरी उम्मीद हम खुद है

बदन मेरा मिट्टी का सांसे मेरी उधार है, घमंड करूँ तो किस बात का यहाँ हम सब तो किरायेदार हैं। ये Story एक गुरुकुल में पढ़ने वाले शिष्य की जिसका अंतिम दिन था। गुरुकुल में वो गुरूजी को प्रणाम करने के लिए विदा लेने के लिए पहुंचा तो गुरूजी ने उसे बदले में भेंट दिए एक तोहफा दिया और कहा कि बेटा ये एक ऐसा दर्पण है जो सामने वाले के मन में क्या चल रहा है, दुर्गुण है अवगुण है, अच्छे गुण है, सब बता देता है।

अकेले रहने का मजा ही अलग हैं

वो शिष्य बड़ा प्रसन्न हुआ की गुरु जी ने तो बड़ी अनमोल भेंट दी है और उसे लगा की सबसे पहले गुरूजी को ही देख लेते है की कैसे देखते है तो गुरूजी की तरफ उसने शीशा घुमाया तो गुरु जी के अंदर उसे दुर्गुण दिखाई दी। उसे दिखाई दिया की क्रोध बचा हुआ है। अहंकार बचा हुआ है, द्वेष बचा हुआ है। अब गुरु जी थे, कुछ बोल नहीं सकता था, उन्होंने ही भेंट दी थी तो कुछ बोला नहीं, चुपचाप प्रणाम करके निकल लिया और जब बाहर जा रहा था घर की तरफ तो सोच रहा था की कैसे गुरु हैं, इनको मैंने अपना आदर्श माना और इनके अंदर अवगुण बचे हुए हैं।

इन्होंने अपनी ही अवगुणों को खत्म नहीं किया। इनके अंदर बुराइयाँ बची हुई हैं। बहुत उसका जो था भरोसा टूटता जा रहा था। रास्ते में उसे एक उसका पुराना दोस्त मिला तो उसे लगा की दोस्त की भी परीक्षा ले लेते हैं। अब उसके पास में कैसा हथियार आ चुका था, एक ऐसा दर्पण आ चुका था, मिरर आ चुका था। सामने वाले के मन में क्या चल रहा हैं, पता कर सकते हैं तो उसने अपने दोस्त को भी दिखाया की भाई देखना। एक बार अपना चेहरा और उसके मन के भाव पढ़ ले के उसके अंदर भी बहुत सारी बुराईया हैं। अवगुण हैं, काम क्रोध लोभ बचा हुआ है।

उसका भरोसा टूट गया। दोस्त पर से भी आगे बढ़ा तो उसे एक रिश्तेदार दिखाई दिया। उसे लगा की चलो इनका भी हाल जान लेते हैं तो उनको भी दिखाया किसी बड़ा कमाल का मैं लाया हूँ दर्पण और उन्होंने अपना चेहरा देखा तो उन्होंने मन के भाव पढ़ लिए, शिष्य ने की रिश्तेदार में भी कमियां उसका भरोसा धीरे धीरे संसार पर से उठने लगा की गुरूजी में कमिया हैं, दोस्त में कमियां, रिश्तेदार में कमियां क्या चल रहा है दुनिया में लोग बताते क्या है और अंदर से कैसे हैं डबल स्टैन्डर्ड की दुनिया है मिथ्या संसार हैं।

बहुत गुस्सा कर रहा था। अंदर ही अंदर अब अपने घर की गली की तरफ आ चूका था और गली में जब घर की तरफ बढ़ रहा था तो सोच रहा था की मम्मी पापा जो है उनमे कोई दुर्गण नहीं हुआ, कोई अब गुण नहीं होगा, वो निर्मल होंगे। मेरे पिताजी तो बड़े प्रतिष्ठित है। समाज में बड़ी प्रतिष्ठा है, उनकी माँ को देवतुल्य मानते है। सब तो गया घर पर और जाकर के पिताजी को सबसे पहले दिखाया की देखिए दर्पण में अपना चेहरा आपके लिए लाया हूँ। पिताजी में भी उसे अवगुण दिखाई दिए, बुराइयाँ दिखाई दिए, उसका तो भरोसा ही टूट गया। माताजी को दिखाया तो उनमे भी कमिया दिखाई दी।

फिर उसे लगा की अब बिना देरी के वापस गुरुकुल जाते है और ये गुरूजी को वापस सौंपते है और उनसे पूछते है की चल क्या रहा है दुनिया में कितनी डबल स्टैन्डर्ड की दुनिया हो गई गया सीधा गुरुकुल में जाकर गुरु जी को प्रणाम किया और कहा ये दर्पण आपने क्या दे दिया हैं, इसमें सबके भाव पता चल रहे है और देखो आप कैसी दुनिया चल रही है यहाँ तक की गुरूजी आप में भी बुराइयाँ बची हुई है। आपने अपनी बुराइयों पर काम नहीं किया, आप भी निर्मल नहीं हुए। गुरूजी ज़ोर ज़ोर से हंसने लगे और कहने लगे एक सेकंड के लिए रुकना उन्होंने उस दर्पण को जो था उस शिष्य की तरफ घूमा दिया और कहा अपना चेहरा देखो, फिर बताया उसे की देखो कितने सारे अवगुण तुम्हारे अंदर है। उसका पूरा मन मैला था।

कहीं पर भी निर्मलता नहीं थी। सारे अवगुण काम, क्रोध, लोभ, मौसम भरा हुआ है। गुरूजनिका बेटा दर्पण तुम्हें इसलिए दिया था ताकि तुम अपने आप को देखो और अपनी बुराइयों को, अपने दुर्गुणों को नष्ट करो, बुराइयों को मिटाओ और अच्छे इंसान बनो। तुमने पूरा दिन निकाल दिया है। देखने में की किस में क्या भरा हुआ है जब की ये नहीं देखा की मेरे अंदर कितनी बुराइयाँ है।

इस दुनिया में सब यही तो कर रहे हैं, दूसरे के अवगुण देख रहे हैं, दूसरे की बुराइयों पर डिस्कॅस कर रहे हैं, टाइम वेस्ट कर रहे हैं बजाय की अपने जो अवगुण हैं, जो अपनी बुराइयाँ है, उनको नष्ट करने में हमें सबसे पहले अपने अंदर की कमियों को खत्म करना है। सब ऐसा करने लग गए तो दुनिया अपने आप निर्मल बन जाएगी, लेकिन दिक्कत ये है की सब दूसरे में ही बुराइयाँ ढूंढ रहे हैं।

Read More:
  • अकेले रहने का मजा ही अलग हैं
Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version